Saturday, June 6, 2009

बेवजह हँसी

सुबह उठते ही
मन अच्छा - अच्छा लगा
जैसा की हो जाता है
कभी - कभी

होठों पे मुस्कराहट
फ़ैल रही थी यूं ही
हर किसी से बात करना
अच्छा लग रहा था

पानी नही आ रहा था
फिर भी गुस्सा नही आया
हर पल के साथ एक
सुकून मिल रहा था दिल को

अचानक ही मै हँस पडी
बेवजह ही

ये बेवजह हँसी काफी गहराई तक
ठंढक पहुँचा गयी
जिसका अहसास कई दिनों तक
कम नही हुआ

सुकून के पल ऐसे ही आते है
बेवजह हँसी बन
बिना बताये अचानक

संजो कर रखा उसे
अगली बेवजह हँसी के आने तक

Friday, June 5, 2009

बिजली की कौंध -सी खुशी

बादलों के बीच जब
बिजली चमकती है
क्षण भर को ही सही
हर चीज ढक जाती है



और उस बिजली की कौंध
काफी गहराई तक जाती है

ऐसे ही होते है लम्हे खुशी के
पल भर को ही सही
हर गम जाती है
और पल भर को ही आती है

गर उसे संजो ले हम
बिजली की कौंध की तरह
तो ग़मगीन पल को जिन्दगी पे
बादलों की तरह छाने नही देगी

उस एक पल को ही सही
क्यूं इस गहराई में रख ले
कि कोई जख्म उससे गहरा हो

बिजली की कौंध और
जिन्दगी में खुशी
पल भर को आती है
अँधेरा और गम मिटा जाती है

ख्वाबों का जहां

कुछ पल ख्वाबों को
हकीकत से टकराने न दो
जिन्दगी को कभी- कभी
ख्वाब में जी जाने दो


हर मुराद , हर तमन्ना
कोई ख्वाहिश न हो अधूरी
चंद लम्हों को ही सही
जी ले इंसान जिन्दगी पूरी


जिन्दगी हो ,जिन्दादिली हो
कोई बंदिश न वहाँ हो
अरमानों से सजा
ख्वाबों का इक जहां हो